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हमसफ़र 15 पॉर्ट सीरीज पॉर्ट - 5




हमसफ़र (भाग -5)


   आज सुमित और उसके परिवार को आना है। पूजा की सारी व्यवस्था हो गई है; पण्डित जी के आते ही शुरु हो जायेगी  फिर हवन और कन्या पूजन होगी।

सुमित भी परिवार सहित आने ही वाला होगा । उन्हें भी तो पूजा में शामिल होना था। इन लोगों ने उनके स्वागत के लिए भी तैयारियां की थी। पहली बार उनके घर सुमित का परिवार आ रहा था। वीणा की मां घर को व्यवस्थित करने में लगी थी। इसमें वीणा भी सहायता की और उसकी छोटी बहनों ने भी।



वीणा के पापा बहुत परेशान थे कि वे लोग क्यों आ रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं यह देखने आ रहे हैं कि दिया गया कर्ज वापस करने की स्थिति में हैं या नहीं। कॉलेज से घर आते ही वीणा ने फीस की बाबत बताते हुए पूछा था किसके द्वारा उन्होंने फीस भेजी थी और उसे बताया क्यों नहीं ! सुनकर पूरा परिवार आश्चर्य चकित रह गया था!

  पापा ने कहा  -  " क्या कह रही हो ? मैं किसी को भेजता तो तुम्हें बताता तो ! मैं तो अभी व्यवस्था में ही लगा हूँ। अपने कार्यालय में भी आवेदन दिया है कर्ज के लिये, अभी सुमित का कर्ज भी तो लौटाना है"।




सुमित का नाम आते ही वीणा ने वीरेन से सुमित का नंबर लेकर उसे फोन किया, और उससे फीस की बाबत पूछा। वीणा ने पहली बार फोन किया सुमित को और वह भी फीस के लिये। सुमित ने स्वीकार किया। वीणा बहुत नाराज हुई और कहा -  " ऐसा क्यों किया आपने ! 20,000 मेरे पास था ही, और पापा एक-दो दिन में देने वाले थे,मैं फीस जमा कर देती"।




  सुमित  - "अरे आप इतना क्यों परेशान होती हैं। पापा जब देंगे तो आप मुझे दे दीजिएगा। आप अपनी पढ़ाई पर ध्यान दीजिये। आराम से जमा करते रहिए रुपये, जब एक लाख पूरे हो जाएंगे तो मुझे दे दीजिएगा। अभी आपको फिर से फीस के लिये परेशान किया जाता। मुझे अपनी फीस लिए रूपये लेकर जाना ही था, इसलिए मैं आपके लिए भी लेकर गया और अपने कॉलेज में देने के साथ आपके कॉलेज में भी जा कर दे दिया। वह शहर तो पराया है, पर हम दोनों एक शहर के होने के नाते अपने हैं"।




यह बातें भी वीणा ने अपने पापा को बतला दी थी। उसके पापा इससे भी परेशान थे क्योंकि वह जल्दी में एक लाख दे पाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए वे थोड़े घबड़ाये से थे।




वे चौंके जब पत्नी सुनीता ने आकर कहा - " अरे आप क्या सोच रहे हैं! जाकर बाजर से कुछ मिठाईयां ले आइएगा। मैं घर में सब्जी वगैरह बना रही हूं अब आएंगे तो पूजा के बाद उन्हें खाना खिला कर ही हम लोग भेजेंगे"।




 वीणा के पिता महेंद्र जी ने कहा - " सुनीता वो कितने लोग आएंगे पता नहीं। हमारा छोटा सा घर है, कहां बैठायेंगे उन्हें। अधिक जगह भी नहीं है, और वह भी इतने बड़े लोगों के लायक!" 




  वीणा  -  "क्या पापा आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं। अरे हमारी स्थिति जो है वह है। क्या उन्हें पता नहीं हमारी स्थिति क्या है ? हमारी स्थिति जानते हुए अगर वह अपने पूरे परिवार सहित आ रहे हैं तो यह उनके सोचने का है। हम तो खुशी और सम्मान से उनका स्वागत करेंगे। अब हम उनके लिए नया घर तो नहीं ला सकते हैं ना! आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। कर्ज के पैसों की तो आप बिल्कुल ही चिन्ता मत कीजिये। उनके मांगने के पहले ही हम लोग उनको बोल देंगे । सुमित को भी बोल देंगे कि हम उन्हें खुद ही जितनी जल्दी हो चुका देंगे"। 




   वीरेन -  "दीदी सुमित भैया को कुछ मत बोलना। वो तो स्वयँ बार-बार बोलते हैं कि कर्जे की चिंता मत कीजिए। और वैसे  भी यह बोलना अच्छा लगेगा क्या उनके माता-पिता के सामने। उनको कुछ भी मत बोलना अच्छा नहीं लगेगा"।



   यह सुनकर वीणा खामोश रह गई। तभी पण्डित जी आ गये और माँ-पापा पूजा के लिये जाने लगे। वीरेन ने कहा  -  "मैं मिठाई ले आता हूँ। सुमित भैया भी आ ही रहे होंगे"।

  

           निर्मला कर्ण

                                क्रमशः



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3 Comments

Alka jain

04-Jun-2023 12:52 PM

V nice 💯

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वानी

01-Jun-2023 06:58 AM

Nice

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